Tuesday, May 28, 2024

गाँवों


तुम कह रहे हो ' वैसे गाँवों में क्या रखा है ! '

होती थी शाम मम्मी, कहतीं थीं आ बना दूॅं,

बाबा की प्यारी बिट्टी, अम्मा का राजा-बाबू,

आँखों में मोटा काजल, माथे पे एक टीका,

कहतीं थीं 'खेल आओ', दे कर के एक सिक्का,

तब छूटते ही घर से, अम्मा को दौड़ते थे

जाए जहाॅं भी अम्मा, अम्मा न छोड़ते थे,

लड़ती थी लाड़ में इक, बछिया वो नीम नीचे,

पूछो न नीम की उस छाॅंव में क्या रखा है!

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दिन ढलते रोज द्वारे, बिछती थी एक खटिया ,

बाबा बुलाते थे फिर, 'आओ कहाँ हो बिटिया ?'

बारहखड़ी, पहाड़े, भर पेज लेख हिंदी,

सुनते थे पहले सीधी, फिर सौ से उल्टी गिनती,

फिर कुछ सवाल-मीनिंग, बूझो तो तुमको जाने,

हम करते नींद के या, फिर भूख के बहाने,

चप्पल पहन के जिनकी, चलते थे शौक में हम

तुम पूछते हो उनके, पांवों में क्या रखा है ?

वो दोपहर की नींदें, वो रात की कहानी ,

अम्मा के चोर - डाकू, भगवान , राजा - रानी,

चलता था आना-जाना, घर-घर में तब किसी भी,

होते न थे पड़ोसी, होतीं थीं चाची - भाभी,

जाते थे देखने जब, नहरों में  बहता पानी

या खेत, मेढ़, कुईयां, ये बाजरा वो धानी,

कंधे पे जो पिता के, घूमें है बैठ सारा ,

क्या - क्या बताएं ऐसे गाँवों में क्या रखा है !

साभार : मनु वैशाली की फेसबुक वाॅल से |

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है

और तू मेरे गांव को गँवार कहता है।😏

ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है

तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है।।

थक गया है हर शख़्स काम करते-करते

तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।

गांव चलो वक़्त ही वक़्त है सबके पास

तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।।

मौन होकर फ़ोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं

तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।

जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा

तू उन माँ बाप को अब भार कहता है।।

वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे

तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।

बड़े-बड़े मसले हल करती थीं पंचायतें

तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।।

बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में

पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है।

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं

तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।।








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