अंगद-अक्षयकुमार-रावण प्रसंग
रामायण के युद्धकांड में कई ऐसे प्रसंग आते हैं जो नीति, पराक्रम, और चरित्र के गहरे अर्थ बताते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्रसंग है जब रावण के दरबार में अंगद जाते हैं, और फिर रावण का पुत्र अक्षयकुमार श्रीराम की सेना से युद्ध करता है।
१. अंगद का रावण-दूत बनकर लंका जाना
जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध निश्चित हो गया, तब श्रीराम ने रावण को अंतिम अवसर देने के लिए एक दूत भेजने का निश्चय किया। हनुमान जी पहले ही लंका जाकर सीता माता का पता लगा चुके थे और लंका के बल का आकलन भी कर लिया था। इस बार अंगद, जो बालि के पुत्र थे और महान पराक्रमी थे, को दूत बनाकर भेजा गया।
अंगद रावण के दरबार में गए और नीति व शांति का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि यदि रावण अब भी माता सीता को श्रीराम को लौटा दे, तो उसका कल्याण होगा। लेकिन रावण अपने अहंकार में अड़ा रहा।
जब अंगद ने देखा कि रावण अपनी हठधर्मिता से पीछे हटने वाला नहीं है, तो उन्होंने अपना एक पाँव भूमि पर रखकर घोषणा की—
"यदि लंका में कोई वीर है, तो मेरे इस पाँव को हिला कर दिखाए!"
रावण के पुत्र मेघनाद समेत सभी महारथी बल लगाकर भी अंगद का पाँव नहीं हिला सके। अंत में, रावण स्वयं उठा, लेकिन जैसे ही वह अंगद की ओर बढ़ा, अंगद ने कहा—
"रावण! यदि तू अपने बल पर मेरे पाँव को नहीं हिला सकता, तो सोच कि तू श्रीराम का सामना कैसे करेगा? तेरा अंत निकट है!"
यह कहकर अंगद छलांग लगाकर वापस श्रीराम के पास चले आए।
२. अक्षयकुमार का श्रीराम की सेना से युद्ध
अंगद के लौटने के बाद रावण को स्पष्ट हो गया कि युद्ध निश्चित है। जब श्रीराम की वानर सेना ने लंका पर चढ़ाई शुरू की, तो रावण ने पहले अपने सबसे छोटे पुत्र अक्षयकुमार को युद्ध के लिए भेजा।
अक्षयकुमार एक अत्यंत तेजस्वी और वीर योद्धा था। उसने वानर सेना पर भयानक आक्रमण किया और कई योद्धाओं को परास्त किया। उसकी युद्धकला देखकर स्वयं हनुमान जी को उससे युद्ध करने के लिए आना पड़ा।
हनुमान जी और अक्षयकुमार के बीच घमासान युद्ध हुआ। अक्षयकुमार ने अपने दिव्यास्त्रों से हनुमान जी को बाँधने की चेष्टा की, लेकिन वे सभी व्यर्थ हुए। अंत में, जब हनुमान जी ने देखा कि युद्ध लंबे समय तक खिंच सकता है, तो उन्होंने अपनी गदा उठाई और एक ही प्रहार में अक्षयकुमार को मार गिराया।
३. इस प्रसंग का संदेsh
अंगद का रावण के दरबार में जाना अहंकार और धर्म के टकराव को दर्शाता है। सत्य और नीति के संदेश को स्वीकार करने वाला ही विजयी होता है।
अक्षयकुमार का युद्ध यह दिखाता है कि वीरता और साहस महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अधर्म के पक्ष में होने पर पराजय निश्चित है।
हनुमान जी का पराक्रम सिद्ध करता है कि धर्म के पक्ष में खड़े होने वाले को कोई परास्त नहीं कर सकता।
इस प्रकार, अंगद, अक्षयकुमार, और रावण के इस प्रसंग में रामायण का गहरा नीति-संदेश छिपा हुआ है।
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