शेष महेश गणेश दिनेश , सुरेश जाहि निरंतर गावे ।
शेष महेश गणेश दिनेश , सुरेश जाहि निरंतर गावे । जाहि अनादि अनंत अखंड , अछेद अभेद सुवेद बतावे ।। नारद से शुक व्यास रटे , पवि हारे तऊ पुनि पार ना पावे ।। ताहि अहीर की छोहरिया ,छछिया भर छाछ पे नाच नचावे ।। - रसखान, एक मुस्लिम कवि
अर्थ
शेष यानी शेषनाग, महेश यानी भगवान् शिवजी, दिनेश यानी सूर्यदेव, सुरेश यानी इंद्रदेव यह सब देवता गण जिसकी पूजा करते हैं जिसको अनादि यानी जिसका उद्भव ना अंत पता है, जिसके खंड नही किए जा सकते हैं जिस में छेद ना किए जा सकते हो, भेदना संभव नहीं है ऐसा वेद बताते हैं ।नारद शुक व्यास जैसे ऋषि मुनि इनके बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं पर हार जाते हैं । ऐसे श्री कृष्ण जी को अहीरों की लड़कियां थोड़ा-थोड़ा मक्खन दिखाकर नाचने को कहती हैं वह नाचते भी है. ॐ ॐ ॐ
शेष महेश गणेश दिनेश , सुरेश जाहि निरंतर गावे ।
शेष महेश गणेश दिनेश , सुरेश जाहि निरंतर गावे । जाहि अनादि अनंत अखंड , अछेद अभेद सुवेद बतावे ।। नारद से शुक व्यास रटे , पवि हारे तऊ पुनि पार ना पावे ।। ताहि अहीर की छोहरिया ,छछिया भर छाछ पे नाच नचावे ।। - अर्थ : शेष यानी शेषनाग महेश यानी शिवजी दिनेश यानी सूर्यदेव, सुरेश यानी इंद्रदेव यह सब देवता गण जिसकी पूजा करते हैं जिसको अनादि यानी जिसका उद्भव ना अंत पता है, जिसके खंड नही किए जा सकते हैं जिस में छेद ना किए जा सकते हो, भेदना संभव नहीं है ऐसा वेद बताते हैं ।नारद शुक व्यास जैसे ऋषि मुनि इनके बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं पर हार जाते हैं । ऐसे श्री कृष्ण जी को अहीरों की लड़कियां थोड़ा-थोड़ा मक्खन दिखाकर नाचने को कहती हैं वह नाचते भी है. ॐ ॐ ॐ
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।
इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः ॥
शिव पंचाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥
अर्थ- जिनके कंठ मे सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अनुलेपन हुआ है और दिशांए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर 'न' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
श्लोक- मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥
अर्थ- गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चना हुई है, मन्दार के फूल और अन्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है, उन नंदी के अधिपति और प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर 'म' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
श्लोक- शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥
अर्थ- जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिन्ह है, उन शोभाशाली श्री नीलकण्ठ 'शि' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
श्लोक- वसिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवायः॥
अर्थ- वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने तथा इंद्र आदि देवताओं ने, जिनके मस्तक की पूजा की है। चंद्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन 'व' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
श्लोक- यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवायः॥
अर्थ- यक्षरूप धारण करने वाले, जटाधारी, जिनके हाथ में उनका पिनाक नाम का धनुष है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव 'य' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
||इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्||
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