Saturday, May 7, 2022

13 in 1

 Ae ri main to prem deewaani




Mera dard na jaane koye




Ae ri main to prem deewaani




Mera dard na jaane koye




Na main jaanu aarti vandan




Naa poojaa kii riit




Hai anjaani daras deewaani




Merii paagal priit




Liye re maine do nainon ke Deepak liye sanjoy





Ae ri main to prem deewaani




Mera dard na jaane koye




Aashaa ke phoolon ki maalaa




Saanson ke sangeet




In par phooli chali rijhaane




Apne man kaa meet




Ae ri maine nain dor mein Sapne liye piroye




Ae ri main to prem deewaani




Mera dard na jaane koye




Ae ri main to prem deewaani





HE RI ME TO PREM DIWANI MERO DARAD NAA JAANE KOY LYRICS


He Ri Me To Prem Diwani Mero Darad Naa Jaane Koy


He Ree Main To Prem-divaanee Mero Darad Na Jaanai Koy.


Ghaayal Kee Gati Ghaayal Jaanai,

 Jo Koee Ghaayal Hoy.


Jauhari Kee Gati Jauharee Jaanai, 

Kee Jin Jauhar Hoy.


Soolee Oopar Sej Hamaaree,

 Sovan Kis Bidh Hoy.


Gagan Mandal Par Sej Piya Kee

 Kis Bidh Milana Hoy.


Darad Kee Maaree Ban-ban Doloon

 Baid Milya Nahin Koy.


Meera Kee Prabhu Peer Mitgee,

 Jad Baid Saanvariya Hoy.



 




Ae Ri Main To Prem Deewani Mera dard na jaane koye -


म्हारा ओलगिया घर आया जी।


तन की ताप मिटी सुख पाया, हिल मिल मंगल गाया जी॥



घन की धुनि सुनि मोर मगन भया, यूं मेरे आनंद छाया जी।


मग्न भई मिल प्रभु अपणा सूं, भौका दरद मिटाया जी॥



चंद कूं निरखि कमोदणि फूलैं, हरषि भया मेरे काया जी।


रग रग सीतल भई मेरी सजनी, हरि मेरे महल सिधायाजी॥



सब भगतन का कारज कीन्हा, सोई प्रभु मैं पाया जी।


मीरा बिरहणि सीतल होई दुख दंद दूर नसाया जी॥


हमारो प्रणाम बांकेबिहारी को।


मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे, कुंडल अलका कारी को॥



अधर मधुर पर बंसी बजावै रीझ रिझावै राधा प्यारी को।


यह छवि देख मगन भई मीरा, मोहन गिरधर -धारी को॥


पपइया रे, पिव की वाणि न बोल।


सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़॥


चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण।


पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥


थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज।


चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज॥


प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे, कागा तू ले जाय।


जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे, थांरि बिरहस धान न खाय॥


मीरा दासी व्याकुल रे, पिव पिव करत बिहाय।


बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम विन रह्यौ न जाय॥


मीरा बाई के काव्य में विरोध के स्वर : भक्ति कालीन काव्य में मीरा बाई का स्थान कवित्री के रूप में सर्वोच्च रहा है। जहाँ एक और श्री कृष्ण के प्रति उनका प्रेम अथाह और पूर्ण समर्पण को दर्शाता है वहीँ दूसरी और नारी की वेदना भी परिलक्षित होती है। मीरा बाई के व्यक्तित्व को जब हम जानने का प्रयत्न करते हैं तो पाते हैं की मीरा बाई कृष्ण भक्त ही नहीं उनका दृष्टिकोण पूर्णतया मानवतावाद पर भी आधारित है। मीरा श्री कृष्ण के की भक्ति में इतना डूब गयीं की उन्हें इस संसार से भी कोई विशेष लगाव नहीं रहा। वे मंदिर में बैठ कर पांवों में घुंघरू बाँध कर नाचने लग जाती। तात्कालिक समाज में नारी को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं थे विशेषकर भक्ति में। एक नारी होकर भजन गाना, नाचना ये उच्च कुल की स्त्रियों के लिए तो मानों पूर्णतया वर्जित था। यही नहीं मीरा बाई ने सभी बंधनों को तोड़ते हुए साधुओं की संगत में रहना भी शुरू कर दिया था। उस समय की सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था इसके पक्ष में नहीं थी। 



 









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