Sunday, March 31, 2024

P s abm.


इन दिनों अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के उद्घाटन और उसमें राम लला की मुर्ती की चर्चा हर तरफ हो रही है. इस बीच सोशल मीडिया पर अभि मुंडे (Psycho Shayar) (अभिजीत बालकृष्ण मुंडे) की एक कविता “राम” वायरल हो गई है. अयोध्या के राम मंदिर में होने जा रहे है राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले आइ इस कविता ने रातों-रात सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और इसे लोग अयोध्या का बुलावा भी बता रहे हैं. क्योंकि खुद कवि अंत में कहते हैं कि, “… चलिए तो फिर मिलते हैं हमें भी अयोध्या आना है.”


तो आइए आपको भी छोड़ चलते हैं साइको शायर की “राम” कविता के साथ. आप भी सुनिए और पढ़िए और बताइए क्या कवि ने राम के चरित्र के साथ न्याय किया है और क्या राम के चरित्र को सही ढंग से बतला पाएं हैं.


राम साइको शायर की वायरल कविता – Ram Psycho Shayar Abhi Munde Viral Poem on Ram

हाथ काट कर रख दूंगा 

ये नाम समझ आ जाए तो

कितनी दिक्कत होगी पता है

राम समझ आ जाए तो


राम राम तो कह लोगे पर

राम सा दुख भी सहना होगा 

पहली चुनौती ये होगी के 

मर्यादा में रहना होगा


और मर्यादा में रहना मतलब कुछ खास नहीं कर जाना है..

बस.. 

बस त्याग को गले लगाना है और

अहंकार जलाना है


अब अपने रामलला के खातिर इतना ना कर पाओगे

अरे शबरी का जूठा खाओगे तो पुरुषोत्तम कहलाओगे


काम क्रोध के भीतर रहकर तुमको शीतल बनाना होगा

बुद्ध भी जिसकी छांव में बैठे वैसा पीपल बनाना होगा

बनना होगा ये सब कुछ और वो भी शून्य में रहकर प्यारे

तब ही तुमको पता चलेगा..

थे कितने अद्भुत राम हमारे


सोच रहे हो कौन हूं मै,?

चलो.. बता ही देता हूं

तुमने ही तो नाम दिया था

मैं.. 

पागल कहलाता हूं

नया नया हूं यहां पे तो ना पहले किसी को देखा है 

वैसे तो हूं त्रेता से.. मुझे कृ..

किसने कलयुग भेजा है


भई बात वहां तक फैल गई है

की यहां कुछ तो मंगल होने को है

के भरत से भारत हुए राज में 

सुना है राम जी आने को हैं


बड़े भाग्यशाली हो तुम सब

नहीं, वहां पे सब यहीं कहते है

के हम तो रामराज में रहते थे..

पर इन सब में राम रहते है


यानी.. 

तुम सब में राम का अंश छुपा है.?

नहीं मतलब वो.. 

तुम में आते है रहने?


सच है या फिर गलत खबर?

गर सच ही है तो क्या कहने


तो सब को राम पता ही होगा

घर के बड़ों ने बताया होगा..


तो बताओ..

बताओ फिर कि क्या है राम

बताओ फिर कि क्या है राम..

बताओ…


अरे पता है तुमको क्या है राम..?

या बस हाथ धनुष तर्कश में बाण..

या बन में जिन्होंने किया गुजारा

या फिर कैसे रावण मारा

लक्ष्मण जिनको कहते भैया

जिनकी पत्नी सीता मैया

फिर ये तो हो गई वो ही कहानी 

एक था राजा एक थी रानी

क्या सच में तुमको राम पता है

या वो भी आकर हम बताएं?


बड़े दिनों से हूं यहां पर..

सबकुछ देख रहा हूं कबसे

प्रभु से मिलने आया था मै..

उन्हें छोड़ कर मिला हूं सब से

एक बात कहूं गर बुरा ना मानो 

नहीं तुम तुरंत ही क्रोधित हो जाते हो

पूरी बात तो सुनते भी नहीं..

सीधे घर पर आ जाते हो


ये तुम लोगों के.. 

नाम जपो में..

पहले सा आराम नहीं


ये तुम लोगों के.. नाम जपो में..पहले सा आराम नहीं

इस जबरदस्ती के जय श्री राम में सब कुछ है..

बस राम नहीं!


ये राजनीति का दाया बायां जितना मर्ज़ी खेलो तुम

( दाया बायां.. अरे दाया बायां..?

ये तुम्हारी वर्तमान प्रादेशिक भाषा में क्या कहते है उसे..?

हां..

वो.. 

लेफ्ट एंड राइट)


ये राजनीति का दाया बायां जितना मर्ज़ी खेलो तुम

चेतावनी को लेकिन मेरी अपने जहन में डालो तुम

निजी स्वार्थ के खातिर गर कोई राम नाम को गाता हो

तो खबरदार गर जुर्रत की.. 

और मेरे राम को बांटा तो


भारत भू का कवि हूं मैं..

तभी निडर हो कहता हूं

राम है मेरी हर रचना में

मै बजरंग में रहता हूं

भारत की नीव है कविताएं

और सत्य हमारी बातों में 

तभी कलम हमारी तीखी और..

साहित्य..

हमारे हाथों में!


तो सोच समझ कर राम कहो तुम

ये बस आतिश का नारा नहीं 

जब तक राम हृदय में नहीं..

तुम ने राम पुकारा नहीं


राम- कृष्ण की प्रतिभा पर पहले भी खड़े सवाल हुए

ये लंका और ये कुरुक्षेत्र..

यूं ही नहीं थे लाल हुए


अरे प्रसन्न हंसना भी है और पल पल रोना भी है राम

सब कुछ पाना भी है और सब पा कर खोना भी है राम

ब्रम्हा जी के कुल से होकर जो जंगल में सोए हो 

जो अपनी जीत का हर्ष छोड़ रावण की मौत पे रोए हो

शिव जी जिनकी सेवा खातिर मारूत रूप में आ जाए

शेषनाग खुद लक्ष्मण बनकर जिनके रक्षक हो जाए

और तुम लोभ क्रोध अहंकार छल कपट

सीने से लगा कर सो जाओगे?

तो कैसे भक्त बनोगे उनके?

कैसे राम समझ पाओगे?

अघोर क्या है पता नहीं और शिव जी का वरदान चाहिए

ब्रम्हचर्य का इल्म नहीं.. इन्हे भक्त स्वरूप हनुमान चाहिए

भगवा क्या है क्या ही पता लहराना सब को होता है 

पर भगवा क्या है वो जाने 

जो भगवा ओढ़ के सोता है


राम से मिलना..

राम से मिलना..

राम से मिलना है ना तुमको..?

निश्चित मंदिर जाना होगा!

पर उस से पहले भीतर जा संग अपने राम को लाना होगा


जय सिया राम

और हां..

अवधपुरी का उत्सव है

कोई कसर नहीं..

सब खूब मनाना

मेरे प्रभु है आने वाले

रथ को उनके 

खूब सजाना

वो..

द्वापर में कोई राह तके है

मुझे उनको लेने जाना है

चलिए तो फिर मिलते है,

हमें भी अयोध्या आना है.



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