Thursday, December 11, 2025

Maryada.

 प्रथम नमन गणपति को, मंगल का आधार,

नमन सरस्वती माँ को, वाणी की संवित्कार।

गुरुजनों, माता-पिता, सबको हमारा प्रणाम—

जिनके चरणों से खुलता है ज्ञान का दिव्य धाम।


अब आरम्भ हो रही है कथा पुरातन काल की,

ये रामायण है पुण्यकथा मर्यादा पुरुषोत्तम राम की।


आर्यावर्त के धरती पर, पवित्र भारत भान में,

एक नगर था अलौकिक, अयोध्या जिसके नाम में।

वहीं जन्मे थे राम, शील, सत्य और धैर्य के साक्षात् रूप—

जिनकी स्मित से जग निर्मल हो, जिनके चरणों में हर स्वरूप।


रघुकुल में राजा दशरथ थे धर्म के दीप समान,

यज्ञ किया संतान हेतु, फल पाया अद्भुत वरदान।

जन्में चारो रत्न—भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, राम—

मानो धरती पर उतरे हों चार दिशाएँ, चार धाम।


गुरुकुल में शिक्षा पाई, विनय, तपस्या, त्याग की,

शौर्य, करुणा, धर्मपथ, मर्यादा की आग की।

ऋषियों ने देखा उनमें तेज सूर्य-सा, चन्द्र-सा शीतल भाव—

जो बना जगत का पथ-प्रदर्शक, रघुवंशी कुल का प्रभाव।


विश्वामित्र ने बुलाया, कहा—‘मेरे यज्ञ की रक्षा हो,’

राम गए लक्ष्मण संग, जैसे पर्वत पर प्रभा की रेखा हो।

ताड़का मारी, राक्षस जीते, धर्म की फिर हुई प्रतिष्ठा—

जग ने पहचाना तब ही राम की वीर और कोमल दृष्टा।


मिथिला में swayamvar हुआ, धनुष उठा न किसी से,

पर राम ने उसे सहज तोड़ा, जैसे प्रभात ढले निशीथे से।

सीता मिलीं—शुद्धता की मूर्ति, धरती की कोख से जन्मी—

दो आत्माएँ एक दीप हुईं, दिव्यता की ज्योतिरमयी संगिनी।


वनवास का घन अंधेरा आया, पर मन में दीप सदा जलते,

राम, सीता, लक्ष्मण त्रय—धर्मपथ पर दृढ़चलते।

दण्डकारण्य, ऋषि-आश्रम, सत्कर्मों के पुष्प खिले,

हर कठिनाई, हर परीक्षा से उनके तेज और निखरे।


सीता-हरण, जटायु-बलिदान, हनुमान-प्रेम का विस्तार,

समुद्रतट पर सेतु-निर्माण, लंका में धर्म का उद्गार।

रावण-वध से सत्य जीता, अन्याय का अंत हुआ—

अयोध्या में दीप जले फिर, राम-राज्य का प्रबंध हुआ।


सुनो हमारे शब्दों में राम-चरित की अनंत धारा—

हर पंक्ति एक तीर्थ समान, हर भाव गुरु के चरणों पारा।

ये कथा नहीं सिर्फ़ इतिहास—ये श्वासों का परम विश्राम,

ये रामायण है पुण्यकथा, पावन कथा श्रीराम।



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