रश्मिरथी – सप्तम सर्ग: कर्ण का पतन और उत्कर्ष
1. रणभूमि में कर्ण का संघर्ष
रण में खड़ा सूर्यपुत्र, अकेला, पर अडिग, पराक्रमी,
तन पर घाव अनेक, पर मुख पर शौर्य ज्योति वही।
पग में थकावट नहीं, न नेत्रों में भीरुता,
मृत्यु समीप जान, भी हृदय में शांति वही।
Karna stands alone on the battlefield — wounded but unbroken.
Even with death near, his face glows with the same fearless light.
2. रथ का पहिया फँसता है
धरती ने जैसे वचन निभाया, गुरु का शाप हुआ साकार,
रथ का चक्र धँस गया, भाग्य बना प्रतिपक्षी फिर एक बार।
कर्ण ने धनुष नीचे रखा, दृष्टि उठाई नभ की ओर,
कहा – “हे सूर्यपिता! क्या यही अंत है वीरता का?”
As the curse of Parashurama takes effect, Karna’s chariot wheel sinks.
He looks skyward — toward his divine father, the Sun — with calm acceptance.
3. अर्जुन और कृष्ण के साथ संवाद
“धर्मराज केशव! धर्म यह है क्या,
जब शस्त्रहीन वीर पर वार किया जाए?”
केशव ने गंभीर स्वर में कहा –
“धर्म आज मौन है, क्योंकि अन्याय बहुत मुखर है।”
Karna questions Krishna — is it righteous to kill an unarmed man?
Krishna answers gravely — when injustice roars, righteousness falls silent.
4. मृत्यु क्षण में कर्ण का तेज
सूर्य की ओर मुख कर, कर्ण निःशब्द खड़ा रहा,
मानो प्रकाश में विलीन हो रहा हो।
क्षण भर में शांत हो उठा रण,
पर उसकी आभा से कांप उठा आकाश।
Karna stands facing the Sun — still and radiant — as if merging with light itself.
Silence falls on the battlefield, yet the heavens tremble with his brilliance.
5. कर्ण के पतन के बाद
“सूर्यसुत गया, पर छोड़े गया प्रकाश अमर,
धरती ने पाया नायक, नभ ने पाया उद्गार।”
“धन्य हुआ यह मृत्युलोक, जहाँ ऐसा मानव जन्मा,
जिसने पराजय में भी विजय का अर्थ समझा।”
The son of the Sun has departed, but his light remains eternal.
Blessed is the earth that bore one who turned defeat into immortal victory.
6. कुंती का विलाप
“ओ मेरे पुत्र!” – कुंती का कंठ फटा,
“जिसे जग ने सूत कहा, वह मेरा ज्येष्ठ था!
मैंने चुप रहकर धर्म को बचाया,
पर मातृत्व को खो दिया।”
Kunti cries out — “The one the world called a charioteer’s son was my eldest!
I kept silent to protect dharma but lost my motherhood forever.
7. पांडवों का शोक और ज्ञान
अर्जुन का धनुष गिरा, युधिष्ठिर निःशब्द रहे,
भीम का गुस्सा आँसू में घुल गया।
ज्ञात हुआ — जिसे वे शत्रु मानते रहे,
वही उनका सबसे श्रेष्ठ भ्राता था।
8. कवि का समापन वाक्य
“वीर मरता नहीं, वह केवल रूप बदलता है,
आकाश में तारा बन जग को दिशा दिखलाता है।
कर्ण गया नहीं, वह आज भी सूर्य की किरणों में मुस्कुराता है।”
A hero never dies — he only changes form,
becoming a star that guides humanity.
Karna lives on in the light of the Sun.
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